कर्मफल या मानव की लीला ? पता नहीं !
मन भर आया, पर यह है ईश्वर की या फिर जग के मानव की ही लीला कहीं ?
पता नहीं ! पर यह तो स्पष्ट है के इसमें इनकी इस जीवन की कोई ख़ता नहीं ।
फिर भी हैं क्यों बाध्य ये बालक यह ही जीववन बिताने के लिये ?
कोई कहेगा : इनके कर्मों के फल-स्वरूप ईश्वर ने इनको सबक दिये ।
इनने दीन-हीन के घर में आ जैसे ही जनम लिया ।
जगती ने इनको अनायास ही कर्म-फलों से जोड़ दिया ।
देख कर जो हाल इनका मन विचलित सा होता है ।
कर्म-फल की दे दुहाई हर दर्शक मन को समझा ही लेता है ।
धन्यवाद उन ग्रंथों को जो हर लेते यूँ उर का भार !
औ भूखे प्राणी के समक्ष हम मना पाते हैं उत्सव-त्यौहार ।
हे प्रभु ! गर सच में हैं ये कर्मफल, तो भी इनकी मासूमियत पर रहम करो !
मानव बन जी पाने का अधिकार न इनसे यूँ हरो !
करुणानिधि ! अपनी करुणा के कुछ कण, कुछ कोशों से कम करदो !
मानव सा जीवन पाने के कुछ कर्मफल, रिण-स्वरूप ही हों चाहे, करुणाकर इनको भी देदो !
मुस्कानें चाहे मिलें न मिलें, पर इनकी गीली पलकों को यह अश्रु धार तो तुम मत दो !
सरस्वती जोशी
पता नहीं ! पर यह तो स्पष्ट है के इसमें इनकी इस जीवन की कोई ख़ता नहीं ।
फिर भी हैं क्यों बाध्य ये बालक यह ही जीववन बिताने के लिये ?
कोई कहेगा : इनके कर्मों के फल-स्वरूप ईश्वर ने इनको सबक दिये ।
इनने दीन-हीन के घर में आ जैसे ही जनम लिया ।
जगती ने इनको अनायास ही कर्म-फलों से जोड़ दिया ।
देख कर जो हाल इनका मन विचलित सा होता है ।
कर्म-फल की दे दुहाई हर दर्शक मन को समझा ही लेता है ।
धन्यवाद उन ग्रंथों को जो हर लेते यूँ उर का भार !
औ भूखे प्राणी के समक्ष हम मना पाते हैं उत्सव-त्यौहार ।
हे प्रभु ! गर सच में हैं ये कर्मफल, तो भी इनकी मासूमियत पर रहम करो !
मानव बन जी पाने का अधिकार न इनसे यूँ हरो !
करुणानिधि ! अपनी करुणा के कुछ कण, कुछ कोशों से कम करदो !
मानव सा जीवन पाने के कुछ कर्मफल, रिण-स्वरूप ही हों चाहे, करुणाकर इनको भी देदो !
मुस्कानें चाहे मिलें न मिलें, पर इनकी गीली पलकों को यह अश्रु धार तो तुम मत दो !
सरस्वती जोशी
हम गुण गाते संस्कारों के, वेदों के पुराणों के,
पर जाने क्यों हर बार हृदय में कोई हलचल सी मचती है ।
कुछ प्रशन अटक से जाते उर में कहीं कसक सी उठती है ।
क्या संस्कारों को पाने का, वेदों की गाथा गाने का,
मौका सब को मिल पाता है ?
क्या जगती का हर प्राणी वे श्लोक सदा सुन पाता है ?
सरस्वती जोशी
पर जाने क्यों हर बार हृदय में कोई हलचल सी मचती है ।
कुछ प्रशन अटक से जाते उर में कहीं कसक सी उठती है ।
क्या संस्कारों को पाने का, वेदों की गाथा गाने का,
मौका सब को मिल पाता है ?
क्या जगती का हर प्राणी वे श्लोक सदा सुन पाता है ?
सरस्वती जोशी
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